राजस्थान में वन सम्पदा (FOREST IN RAJASTHAN)

राजस्थान में वन सम्पदा (FOREST IN RAJASTHAN): राजस्थान के वन सम्पदा के बारे में यहाँ पर चर्चा करेगे और उससे सम्न्बधित मुख्य बिन्दुओं पर विस्तार से जानकारी प्राप्त करेगे

राजस्थान में वन सम्पदा (FOREST IN RAJASTHAN)

अंग्रेजी शासन से पहले भारत में जनता द्वारा जंगलों का इस्तेमाल मुख्यतः स्थानीय रीति-रिवाजों के अनुसार होता था। भारत में सबसे पहले लार्ड डलहौजी ने 1855 में एक वन नीति घोषित की, जिसके तहत राज्य के वन क्षेत्र में जो भी इमारती लकड़ी के पेड़ हैं वे सरकार के हैं और उन पर किसी व्यक्ति का कोई अधिकार नहीं है। ब्रिटिश काल में भारत की पहली राष्ट्रीय वन नीति वर्ष 1894 में प्रकाशित की गई। स्वतंत्रता के पश्चात् 1952 में नई वन नीति बनाई गई। इस वन नीति को 1988 में संशोधित किया गया। इस नीति के अनुसार देश के 33 प्रतिशत भू भाग पर वन होने आवश्यक है।

संविधान के 42वें संशोधन 1976 के द्वारा वनों का विषय राज्यसूची से समवर्ती सूची में लाया गया।

राजस्थान में सर्वप्रथम 1910 में जोधपुर रियासत ने, 1935 में अलवर रियासत ने वन संरक्षण नीति बनाई। राज्य में 1949-50 में वन विभाग की स्थापना की गई। इसका मुख्यालय जयपुर में है। स्वतंत्रता के पश्चात् राजस्थान वन अधिनियम 1953 में पारित किया गया।

राजस्थान वन अधिनियम 1953 के अनुसार वनों को तीन भागों में बांटा गया है।

आरक्षित वन या संरक्षित

इन वनों पर सरकार का पूर्ण स्वामित्व होता है। इनमें किसी वन सम्पदा का दोहन नहीं कर सकते हैं।

सुरक्षित वन या रक्षित

इन वनों के दोहन के लिए सरकार कुछ नियमों के आधार पर छुट देती है।

अवर्गीकृत वन

इन वनों में सरकार द्वारा निर्धारित शुल्क जमा करवाकर वन सम्पदा का दोहन किया जा सकता है।

राजस्थान सरकार द्वारा 8 फरवरी 2010 में अपनी पहली राज्य वन नीति घोषित की गई है। राजस्थान राज्य वन नीति 2010 का उद्देश्य यथोचित समयावधि में राज्य में वनस्पति आवरण को कुल भौगोलिक क्षेत्र के 20 प्रतिशत तक बढ़ाना है।

5 जून 2023 को राजस्थान वन नीति (RPP) 2023 जारी की गई। राजस्थान वन नीति 2023 का उद्देश्य विविधता और संरक्षित क्षेत्रों के सतत प्रबंधन को बढ़ावा देना और वनों के बाहर वनस्पति आवरण बढ़ाने पर विशेष ध्यान देकर आगामी बीस वर्षों में वनस्पति आवरण को राज्य के भौगोलिक क्षेत्र के 20 प्रतिशत तक बढ़ाना है।

भारतीय वन संरक्षण अधिनियम 1980 के तहत 1981 में केन्द्रीय वन अनुसंधान संस्थान देहरादून की स्थापना की गई। इसके चार क्षेत्रीय कार्यालय हैं – शिमला, कोलकाता, नागपुर एवं बंगलौर। पहली रिपोर्ट 1987 को जारी की गई।

राजस्थान में वन का वर्गीकरण – ISFR 2021

पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने 13 जनवरी 2022 को भारतीय वन सर्वेक्षण (एफएसआई) द्वारा तैयार ‘इंडिया स्टेट आफ फाॅरेस्ट रिपोर्ट (आईएसएफआर) 2021 ’ जारी की। 2021 की रिपोर्ट 17वीं रिपोर्ट है।

इंडिया स्टेट आफ फाॅरेस्ट रिपोर्ट 2021, (ISFR 2021) के अनुसार, राजस्थान में (प्रशासनिक प्रतिवेदन 2020-21 के अनुसार) लगभग 32,862.50 वर्ग किलोमीटर का वन क्षेत्र दर्ज किया गया है। यह वन क्षेत्र राज्य के भौगोलिक क्षेत्र का 9.60% है। कानूनी स्थिति के आधार पर, सरकार ने इस वन क्षेत्र को तीन प्रकारों में वर्गीकृत किया है:

आरक्षित वन – 12,176.24 वर्ग किलोमीटर

संरक्षित वन – 18,543.22 वर्ग किलोमीटर

अवर्गीकृत वन – 2,143.04 वर्ग किलोमीटर

आरक्षित वन:

इन वनों पर सरकार का पूर्ण स्वामित्व होता है। इनमें किसी वन सम्पदा का दोहन नहीं कर सकते हैं। राजस्थान में आरक्षित वन के रूप में 12,176.24 वर्ग किलोमीटर या 37.05% वन हैं। सर्वाधिक आरक्षित वन उदयपुर में है।

सुरक्षित वन या रक्षित:

इन वनों की देखभाल सरकार द्वारा की जाती है, इन वनों के दोहन के लिए सरकार कुछ नियमों के आधार पर छुट देती है। राजस्थान में संरक्षित वन के अंतर्गत 18,543.22 वर्ग किलोमीटर या 56.43% वन क्षेत्र है। सर्वाधिक रक्षित वन बारां में है।

अवर्गीकृत वन:

अवर्गीकृत वन वे हैं जिनमें पेड़ों के कटने और मवेशियों के चरने पर कोई प्रतिबंध नहीं है। इन वनों में सरकार द्वारा निर्धारित शुल्क जमा करवाकर वन सम्पदा का दोहन किया जा सकता है। राजस्थान में 2,143.04 वर्ग किलोमीटर या 6.52% क्षेत्र में अवर्गीकृत वन हैं। सर्वाधिक अवर्गीकृत वन बीकानेर में है।

वन रिपोर्ट 2021 के अनुसार राजस्थान में कुल वनावरण 16654.96 वर्ग किमी. (16655 वर्ग किमी.) है, जो राज्य के कुल क्षेत्रफल का 4.87 प्रतिशत है।

वन रिपोर्ट 2019 के अनुसार राजस्थान में कुल वनावरण 16629.51 वर्ग किमी था, जो राज्य के कुल क्षेत्रफल का 4.86% था।

वनावरण में वर्ष 2019 की तुलना में 25 वर्ग किमी की वृद्धि हुई है। यानि 0.01 प्रतिशत की वृद्धि हुई।

वन रिपोर्ट 2021 के अनुसार राजस्थान में कुल वृक्षावरण 8733 वर्ग किमी है, जो राज्य के कुल क्षेत्रफल का 2.55% है। वृक्षावरण में वर्ष 2019 की तुलना में 621 वर्ग किमी की वृद्धि (2019 में 8112 वर्ग किमी) हुई है।

राजस्थान में कुल वनावरण एवं वृक्षावरण 25387.96 (16654.96+8733)वर्ग किमी है, जो राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 7.41% है।

वनावरण और वृक्षावरण

वनावरण – वह सभी भूमि जिसका क्षेत्रफल 1 हेक्टेयर से अधिक हो और वृक्ष घनत्व 10 % से अधिक हो वनावरण कहलाता है।

वृक्षावरण – अभिलिखित वन क्षेत्र के बाहर 1 हेक्टर क्षेत्रफल से कम वाले वृक्ष क्षेत्रों (वनावरण के अतरिक्त ) को इसमें शामिल किया जाता है।

स्टेट ऑफ़ फ़ॉरेस्ट रिपोर्ट 2021 राजस्थान: कैनोपी घनत्व के आधार पर वर्गीकरण

वन आच्छादन (Forest Cover)

श्रेणीक्षेत्रफलभौगोलिक क्षेत्र का प्रतिशत
अत्यधिक सघन वन (VDF)78.150.02
मध्यम सघन वन (MDF)4,368.651.28
खुले वन (OF)12,208.163.57
कुल16,654.964.87
झाड़ी4,808.511.41

गैर-वन क्षेत्र- 93.72%

बहुत घने जंगल (VDF):

70% और अधिक की कैनोपी घनत्व वाले वन कवर भूमि को बहुत घने वन (VDF) कहा जाता है। राजस्थान में, केवल 78.15 वर्ग किलोमीटर बहुत घने जंगल हैं।

प्रतिशत VDF: भौगोलिक क्षेत्र का 0.02%

मध्यम रूप से घने वन (MDF):

40-70% की कैनोपी घनत्व वाले वन कवर भूमि को मध्यम घनत्व वन (एमडीएफ) कहा जाता है। राजस्थान में, केवल 4368.65 वर्ग किलोमीटर के घने जंगल हैं।

प्रतिशत MDF: भौगोलिक क्षेत्र का 1.28%

खुले वन (OF):

10-40% की कैनोपी घनत्व वाले वन कवर के साथ भूमि को ओपन फॉरेस्ट कहा जाता है। राजस्थान में, केवल 12,208.16 वर्ग किलोमीटर खुले जंगल हैं।

प्रतिशत OF : भौगोलिक क्षेत्र का 3.57%

स्क्रब्स:

10% से कम की कैनोपी घनत्व वाली वन भूमि को स्क्रब कहा जाता है। राजस्थान में, लगभग 4808.51 वर्ग किलोमीटर का स्क्रब है।

प्रतिशत Scrubs : भौगोलिक क्षेत्र का 1.41%

गैर-वन क्षेत्र:

गैर-वन क्षेत्र में वन क्षेत्र को छोड़कर अन्य सभी भूमि शामिल हैं।

प्रतिशत गैर-वन: 93.72%

पेड़ों के शाखाओं और पर्ण के आवरण को कैनोपी कहा जाता है। पेड़ों की छतरी द्वारा कवर की गई भूमि के प्रतिशत क्षेत्र को कैनोपी घनत्व कहा जाता है।

भारत में सबसे ज्यादा वन मध्यप्रदेश और सबसे कम हरियाणा में हैं।

राजस्थान, भारत के भौगोलिक क्षेत्र के अनुसार, आरक्षित वन क्षेत्र में 15वां स्थान रखता है।

राज्य में सर्वाधिक वन उदयपुर में है।

राज्य में न्यूनतम वन चुरू में है तथा इसके बाद हनुमानगढ़ है।

राज्य के कुल वन क्षेत्र में सर्वाधिक एवं न्यूनतम वन क्षेत्र वाले जिले –

राजस्थान के सबसे अधिक वन क्षेत्र वाले जिले

क्र. सं.जिलाक्षेत्रफल
1.उदयपुर2753.39
2.अलवर1195.91
3.प्रतापगढ़1033.77
4.बारां1010.05
5.चित्तौड़गढ़990.05

सर्वाधिक प्रतिशत क्षेत्रफल पर वन क्षेत्र वाले जिले

क्र. सं.जिलाभौगोलिक क्षेत्र का प्रतिशत
1.उदयपुर23.49%
2.प्रतापगढ़23.24%
3.सिरोही17.49%
4.करौली15.28%
5.बारां14.45%

राजस्थान के न्यूनतम वन क्षेत्र वाले जिले

क्र. सं.जिलाक्षेत्रफल
33.चूरू77.69
32.हनुमानगढ़92.97
31.जोधपुर109.25
30.गंगानगर115.09
29.दौसा116.60

राजस्थान के न्यूनतम प्रतिशत क्षेत्रफल पर वन क्षेत्र वाले जिले

वन स्थिति रिपोर्ट 2019 की तुलना में वनावरण क्षेत्र में सर्वाधिक वृद्धि एवं सर्वाधिक कमी वाले जिले –

राज्य के 19 जिलों में वनो में वृद्धि हुयी है जबकि 14 जिलों में कमी हुयी है।

झाडी (SCRUB) सर्वाधिक- पाली

वन विभाग, राजस्थान के प्रशासनिक प्रतिवेदन 2022-23 के अनुसार वन संसाधन

वैधानिक दृष्टि से राज्य में वनों की स्थिति

प्रदेश में कुल अभिलेखित वनक्षेत्र (Recorded forest Area ) 32869.69 वर्ग किमी. है। राजस्थान वन अधिनियम 1953 के प्रावधानों के अनुरूप वैधानिक दृष्टि से उक्त वन क्षेत्र को निम्नानुसार वर्गीकृत किया गया है :-

प्रदेश का वानिकी परिदृश्य

वन विकास की योजनाएँ

राजस्थान वानिकी एवं जैव विविधता परियोजना फेज-2

राजस्थान वानिकी एवं जैव विविधता परियोजना फेज-2 जापान इन्टरनेशनल कॉ-आपरेशन ऐजेन्सी (JICA) के वित्तीय सहयोग से राजस्थान राज्य के दस मरूस्थलीय जिले (सीकर, झुन्झुनू, चूरू, जालौर, बाडमेर, जोधपुर, पाली, नागौर, जैसलमेर, बीकानेर) एवं पांच गैर मरूस्थलीय जिले (बांसवाडा, डूंगरपुर, भीलवाडा, सिरोही, जयपुर) तथा सात वन्यजीव संरक्षित क्षेत्रों (कुम्भलगढ़ वन्यजीव अभयारण्य, फुलवाडी की नाल वन्यजीव अभयारण्य, जयसमन्द वन्यजीव अभयारण्य, सीतामाता वन्यजीव अभयारण्य, बस्सीवन्यजीव अभयारण्य, केलादेवी वन्यजीव अभयारण्य रावली टाडगढ़ वन्यजीव अभयारण्य) में क्रियान्वित की जा रही है। इस परियोजना के मुख्य उददेश्य साझा वन प्रबंधन (JFM) की प्रक्रिया से कराये गये वृक्षारोपण एवं जैव विविधता संरक्षण के कार्यों के द्वारा वनाच्छादित क्षेत्र में वृद्धि करना, जैव विविधता संरक्षित करना तथा वनों पर निर्भर जन-समुदाय के आजीविका के अवसरों को बढ़ाना और इस प्रकार राजस्थान प्रदेश के पर्यावरण संरक्षण एवं सामाजिक व आर्थिक विकास में योगदान करना है।

विभाग अन्तर्गत राजस्थान वानिकी एवं जैव विविधता परियोजना फेज-2 में दो नवीन परियोजनाऐं है, जिनका विवरण निम्न प्रकार है-

राज्य में वानिकी एवं जैव विविधता को बढ़ावा देने के लिए नवीन परियोजना प्रस्ताव “ Rajasthan Afforestation and Biodiversity Conservation Project (RABCP) को Japan International Co-operation Agency ( JICA) के Rolling Plan में शामिल करने के लिए दिनांक 3.06.2020 को भारत सरकार के Department of Economic Affairs (D.E.A), New Delhi द्वारा अनुमोदित किया गया था। परियोजना की DPR को D.E. A New Delhi द्वारा JICA India को प्रस्तुत कर दिया गया। यह परियोजना राज्य के अजमेर, बाड़मेर, बांसवाड़ा, बीकानेर, चूरू, चितौडगढ़, डूंगरपुर, जयपुर, जैसलमेर, जालोर, झुंझुनूं, जोधपुर, नागौर, पाली, प्रतापगढ़, सीकर, सिरोही, राजसमंद, एवं उदयपुर सहित 19 जिलों हेतु तैयार की गई है। इस परियोजना की कुल लागत 1803.42 करोड़ रू० है, जिसमें JICA का 1568. 19 करोड़ रू० तथा राज्य सरकार का 235.23 करोड़ रू० अंश है।

बाह्य सहायता प्राप्त एक अन्य नई परियोजना Rajasthan Forestry and Biodiversity Development Project (RFBDP) राज्य के अलवर, बारां, भीलवाडा, भरतपुर, बूंदी, दौसा, धोलपुर, जयपुर, झालावाड, करौली, कोटा, सवाईमाधोपुर एवं टोंक सहित 13 जिलों हेतु तैयार कर A

FD France द्वारा वित्त पोषित करवाई जा रही है। प्रस्तावित इस परियोजना की अनुमानित लागत 1693.91 करोड़ रखी गई है। जिसमें AFD France का 1185.28 करोड़ तथा राज्य सरकार का 508.63 करोड़ रू० अंश है।

नाबार्ड वित्त पोषित वृक्षारोपण परियोजना

प्रदेश में जलग्रहण क्षेत्र के विकास द्वारा राजस्थान को हरा-भरा बनाए जाने हेतु नाबार्ड आर. आई.डी.एफ. अन्तर्गत नाबार्ड वित्त पोषण से राज्य के 17 जिले (अलवर, भरतपुर, दौसा, धौलपुर, करौली, सवाईमाधोपुर, टोंक, अजमेर, बूंदी, बारां, कोटा, झालावाड, चित्तौडगढ, प्रतापगढ, राजसंमद, सिरोही एवं उदयपुर ) में चार चरणों में वर्ष 2012-13 से वन विकास कार्यों का सम्पादन किया जा रहा है।

राजस्थान प्रतिकरात्मक वनरोपण निधि प्रबन्धन और योजना प्राधिकरण (CAMPA )

राजस्थान में वन भूमि का वनेतर उपयोग करने हेतु वन संरक्षण अधिनियम, 1980 के अन्तर्गत माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा वन भूमि के प्रत्यावर्तन के फलस्वरूप प्रयोक्ता अभिकरण से सीए, एनपीवी, एपीसीए, पीसीए, वन्यजीव प्रबन्धन आदि शर्तें अधिरोपित कर राशि संग्रहण की जाती है । उक्त राशि के द्वारा अधिरोपित शर्तों की पालना एवं वन भूमि / वनों के क्षतिपूर्ति के लिए एकत्रित राशि से वन एवं वन्य जीव सुरक्षा, विकास, प्रबन्धन किये जाने हेतु माननीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों के क्रम में भारत सरकार द्वारा प्रतिकरात्मक वनरोपण निधि अधिनियम, 2016 तथा प्रतिकरात्मक वनरोपण निधि नियमावली, 2018 को दिनांक 30.09.2018 से प्रभावशील किया गया है । इन अधिनियम / नियमावली के प्रावधानों के अन्तर्गत जारी भारत सरकार की अधिसूचना दिनांक 14 सितम्बर, 2018 के द्वारा राजस्थान प्रतिकरात्मक वनरोपण निधि प्रबन्धन और योजना प्राधिकरण का गठन किया गया है।

प्रतिकरात्मक वनरोपण निधि अधिनियम, 2016 के मुख्य बिन्दु :-

एडहॉक कैम्पा में जमा राशि में 90 प्रतिशत राशि राज्य निधि में स्थानान्तरित की जावेगी तथा 10 प्रतिशत राशि राष्ट्रीय प्राधिकरण में जमा रहेगी।

राज्य निधि में प्राप्त राशि का उपयोग वृक्षारोपण, वन एवं वन्य जीव सुरक्षा, विकास एवं वन एवं वन्यजीव के प्रबंधन किया जावेगा।

प्रतिकरात्मक वनरोपण निधि अधिनियम, 2016 के क्रियान्वयन के लिए दिनांक 10.08.2018 से प्रतिकरात्मक वनरोपण निधि नियम, 2018 जारी किये गये है। इन नियमों के तहत 80 प्रतिशत राशि वन तथा वन्य जीव प्रबंधन के लिये उपयोग में लायी जावेगी तथा 20 प्रतिशत राशि वन तथा वन्य जीव से संबंधित आधारभूत संरचनाओं के सुदृढीकरण के उपयोग में शामिल कार्मिकों की क्षमता निर्माण के लिये किया जावेगा ।

अरावली वृक्षारोपण योजना

अरावली क्षेत्र को हरा भरा करने के लिए जापान सरकार(OECF – overseas economic co. fund) के सहयोग से 01.04.1992 को यह परियोजना 10 जिलों (अलवर,जयपुर,नागौर, झुंझनूं, पाली, सिरोही, उदयपुर, बांसवाड़ा, दौसा, चितौड़गढ़) में 31 मार्च 2000 तक चलाई गई।

मरूस्थल वृक्षारोपण परियोजना

मरूस्थल क्षेत्र में मरूस्थल के विस्तार को रोकने के लिए 1978 में 10 जिलों में चलाई गई। इस परियोजना में केन्द्र व राज्य सरकार की भागीदारी 75:25 की थी।

वानिकी विकास कार्यक्रम

1995-96 से लेकर 2002 तक जापान सरकार के सहयोग से यह कार्यक्रम 15 गैर मरूस्थलीय जिलों में चलाया गया।

इंदिरा गांधी क्षेत्र वृक्षारोपण परियोजना

सन् 1991 में IGNP किनारे किनारे वृक्षारोपण एवं चारागाह हेतु यह कार्यक्रम जापान सरकार के सहयोग से चालाया गया। 2002 में यह पुरा हो गया।

राजस्थान वन एवं जैविक विविधता परियोजना

वनों की बढोतरी के अलावा वन्य जीवों के संरक्षण हेतु यह कार्यक्रम भी जापान सरकार के सहयोग से 2003 में प्रारम्भ किया गया। इन कार्यक्रमों के अलावा सामाजिक वानिकी योजना 85-86, जनता वन योजन 1996, ग्रामीण वनीकरण समृद्धि योजना 2001-02 एवं नई परियोजना (आदिवासी क्षेत्र में वनों को बढ़ाने हेतु) हरित राजस्थान 2009 अन्य वनीकरण के कार्यक्रम है।

वन प्रशिक्षण केंद्र

राजस्थान वानिकी एवं वन्यजीव प्रशिक्षण संस्थान, जयपुर

मरू वन प्रशिक्षण केंद्र, जोधपुर

वन प्रशिक्षण केंद्र, अलवर

वन्यजीव प्रबंधन एवं रेगिस्तान परितंत्र प्रशिक्षण केंद्र तालछापर, चरू

वनों के प्रकार

शुष्क सागवान वन

ये वन बांसवाड़ा, चितौड़गढ़, प्रतापगढ़, उदयपुर, कोटा तथा बारां में मिलते है। बांसवाड़ा में सर्वाधिक है। ये कुल वनों का 7 प्रतिशत हैं इन वनों में बरगद, आम,तेंदुु,गुलर महुआ, साल खैर के वृक्ष मिलते है।

शुष्क पतझड़ वन

ये वन उदयपुर, राजसमंद, चितौड़गढ़, भीलवाड़ा, सवाई माधाुपुर व बुंदी में मिलते हैं। ये कुल वनों का 27 प्रतिशत हैं। इन वनों में छोकड़ा, आम, खैर , ढाक, बांस, जामुन, नीम आदि के वृक्ष मिलते हैं।

उष्ण कटिबंधीय कांटेदार वन

ये वन पश्चिमी राजस्थान जोधपुर, बीकानेर, जालौर, सीकर, झुंझनू में मिलते हैं। ये कुल वनों का 65 प्रतिशत हैं इन वनों में बबूल, खेजड़ी, केर, बेर, आदि के वृक्ष मिलते है।

उष्ण कटिबंधीय सदाबहार वन

ये वन केवल माउंट आबू के चारों तरफ ही पाये जाते हैं। ये सघन वन वर्ष भर हरे – भरे रहते है। इन वनो का क्षेत्रफल मात्र 0.4 प्रतिशत है। इन वनों में आम, धाक, जामुन, सिरिस, अम्बरतरी, बेल के वृक्ष मिलते है।

सालर वन – ये वन अलवर, चितौड़गढ़ सिरोही और उदयपुर में मिलते है।इन वनों से प्राप्त लकड़ी सामान की पैकिंग और फर्नीचर उद्योग में काम आती है।

वन सम्पदा

बांस – बांसवाड़ा, चितौड़गढ़, उदयपुर, सिरोही।

कत्था – उदयपुर, चितौडगढ़, झालावाड़, बूंदी, भरतपूर।

तेन्दुपत्ता – उदयपुर, चितौड़गढ़, बारां, कोटा, बूंदी, बांसवाड़ा।

खस – भरतपुर, सवाईमाधोपुर, टोंक।

महुआ – डुंगरपुर, उदयपुर, चितौड़गढ़,झालावाड़।

आंवल या झाबुई – जोधपुर, पाली, सिरोही, उदयपुर।

शहर/मोम – अलवर, भरतपुर, सिरोही, जोधपुर।

गोंद – बाड़मेर का चैहट्टन क्षेत्र।

तथ्य

तेन्दुपत्ता से बीड़ी बनती है। इसे टिमरू भी कहते है।

खस एक प्रकार की घास है। इससे शरबत, इत्र बनते है।

महुआ से आदिवासी शराब बनाते है।

आंवल चमड़ा साफ करने में काम आती है।

कत्था हांडी प्रणाली से कथौड़ी जाति द्वारा बनाया जाता है। कत्थे के साथ केटेचिन निकलती है जो चमड़े को रंगने में काम आति है।

तथ्य

पं. राज. के लाठी सिरिज क्षेत्र(भूगर्भीय जल पट्टी) में सेवण प्लसियुरस सिडीकुस, धामन एवं मुरात घासें मिलती है।

राजस्थान में सर्वाधिक धोकड़ा के वन है।

जैसलमेर के कुलधरा में कैक्टस गार्डन विकसित किया जा रहा है।

पलास/ढाक के फूलों से लदा वृक्ष जंगल की आग कहलाता है। इसका वानस्पतिक नाम ब्यूटिया मोनोस्पर्मा है।

खेजड़ी केा रेगिस्तान का कल्पवृक्ष कहते है। इसे शमी, जांटी(पंजाबी, हरियाणी, राजस्थानी), छोकड़ा(सिन्धी) , पेयमय(तमिल), बन्नी(कन्नड़), प्रोसोपिस सिनोरिया(विज्ञान) में कहते हैं 1983 में इसे राज्य वृक्ष घोषित किया गया। इसकी पत्तियों को लुम फली को सांगरी कहते है।

रोहिड़ा को मरूस्थल का सागवान, राजस्थान की मरूशौभा, मारवाड़ टीका कहते है।इस पर केसरिया फुल आते हैं। इन फुलों को 1983 में राज्य पुष्प घोषित किया गया। इसका वानस्पतिक नाम टिकोमेला अण्डलेटा है।

पूर्व मुख्य सचिव मीणा लाल मेहता क प्रयासों से झालाना वन खण्ड, जयपुर में स्मृति वन विकसित किया गया है। 20.03.2006 में इसका नाम बदलकर कर्पूर चन्द कुलिस स्मृति वन कर दिया गया है।

जोधपुर में देश का पहला मरू वानस्पतिक उद्यान माचिया सफारी पार्क में स्थापित किया जा रहा है। जिसमे मरू प्रदेश की प्राकृति वनस्पति संरक्षित की जायेगी।

शेखावटी क्षेत्र में घास के मैदान बीड़ कहलाते है।कुमट,कैर, सांगरी, काचरी व गूंदा के फुल पचकूटा कहलाते हैं।

केन्द्र सरकार ने मरूस्थलीकरण को रोकन के लिए अक्टूबर 1952 में मरू. वृक्षारोपण शोध केन्द्र की स्थापना जोधपुर में की थी।

Arid Forest Research Institute आफरी भी जोधुपर में है।

राजसमंद जिले में खमनौर(हल्दीघाटी) व देलवाड़ा क्षेत्र को चंदन वन कहते हैं।

केन्द्र सरकार द्वारा 07.02.2003 कोर राष्ट्रीय वन अयोग का गठन किया गया।

भारतीय वन सर्वेक्षण की स्थापना 1981 में देहरादून में कि गई।

राजस्थान को वन प्रबन्ध हेतु 13 वृत्तों में बांटा गया है।

जोधपुर जिले के खेजड़ली गांव मं 1730 में बिश्नोई समाज के 363 स्त्री पुरूषों ने इमरती देवी बिश्नोई के नेतृत्व में अपने प्राणों की आहुति दे दी।

इसी स्मृति में खेजड़ली गांव में भाद्रपद शुक्ल दशमी को मेला लगता है।

इससे पहले जीवों की रक्षार्थ 1604 में जोधुपर रियासत के रामासड़ी गांव में पहला बलिदान करमा व गौरा ने दिया।

वन संरक्षण, वन अनुसंधान, वन विकास एवं वानिकी लेखन में उत्कृष्ण कार्य करने वाले व्यक्ति या संस्था के लिए 1994-95 में अमृता देवी स्मृति पुरस्कार प्रारम्भ किया गया।

पाली जिले के सोजत सिटी में पर्यावरण पार्क विकसित किया जा रहा है।

राजस्थान के किस क्षेत्र को विश्व की नमभूमि (वेट लैंड्स ) में शामिल किया गया है – सांभर झील

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