पूर्व मध्यकाल में भारत के कुछ राजवंश -GURUGGKWALA

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पूर्व मध्यकाल में भारत के कुछ राजवंश

छठी शताब्दी के अंतिम चरण में गुप्त साम्राज्य के पतन के साथ भारतीय राजनीति में अनेक नए राज्यों का उदय हुआ। गुप्तों के पतन के बाद उत्तर में कन्नौज राजनीतिक शक्ति का प्रमुख केन्द्र बन गया।

गुप्त साम्राज्य के पतन के परिणाम

भारत के विभिन्न भागों में राजनीतिक सत्ता के अनेक स्वतंत्र केन्द्रों का उदय।

भारत में बहु-राज्यवादी व्यवस्था के विस्तार का प्रारंभ।

जाति व्यवस्था अत्यधिक जटिल हो गयी एवं समाज रूढ़िवादी हो गया।

अर्थव्यवस्था का पतन शुरू हुआ एवं सर्वत्र सामंतवाद की जड़े मजबूत हुई।

उत्तर भारत में राजनीतिक अराजकता की स्थित बन गयी।

राजनीतिक अस्थिरता एवं अनके छोटे राज्यों के बनने के कारण विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा भारतीय हिस्सों को जीतना आसान हो गया।

पूर्व मध्यकालीन प्रमुख राजवंश

राजवंश(पूर्व मध्यकालीन)
उत्तर भारतदक्षिण भारत
पुष्य भूति वंश(थानेश्वर, हरियाणा)चालुक्य वंश(वातापी)
मौखरी वंश(कन्नौज)पल्लव वंश(कांची)
पाल वंश, सेन वंश(बंगाल)पांड्य वंश(मदुरा)
राजपूत वंश गुर्जर प्रतिहार वंश(गुजरात) चौहान वंश(दिल्ली) चन्देल वंश(बुंदेलखंड/जेजाक भुक्ति) परमार वंश(मालवा) चालुक्य(सोलंकी) वंश(अन्हिलवाड, गुजरात)चोल वंश(चोलमण्डलम्)
हिंदुशाही वंश(गांधार)राष्ट्रकूट वंश(मान्यखेत)

पाल वंश(बंगाल)

पाल वंश की स्थापना बौद्ध धर्म के अनुयायी गोपाल ने की थी।

गोपाल ने बिहार शरीफ के निकट ओदन्तीपुरी विहार की स्थापना करवायी थी।

धर्मपाल

उपाधियां – परमेश्वर, परम भट्टारक एवं महाराजाधिराज

यह गोपाल का पुत्र एवं उत्तराधिकारी था।

इसने ‘कन्नौज के त्रिदलीय संघर्ष‘ की शुरूआत की।

गुजराती कवि सोड्ढ़ल ने धर्म पाल को ‘उत्तरापथ स्वामिन’ कहा है।

धर्मपाल ने कन्नौज के शासक इंद्रायुद्ध को हराकर चक्रायुद्ध को अपने संरक्षण में कन्नौज का शासक बनाया।

धर्मपाल ने ‘विक्रमशिला विश्वविद्यालय’ की स्थापना करवायी।

धर्मपाल के शासनकाल में यात्री सुलेमान भारत आया था। सुलेमान ने धर्मपाल को ‘रूहमा’ कहा है।

देवपाल

देवपाल ने मुंगेर को अपनी राजधानी बनाया था।

देवपाल ने प्रतिहार शासक नागभट्ट-2 को पराजित किया।

देवपाल ने परम सौगात की उपाधि ग्रहण की।

महिपाल प्रथम

इसे पाल वंश का दूसरा संस्थापक माना जाता है।

गुजरात का चालुक्य वंश

गुजरात के चालुक्य वंश की स्थापना मूलराज-1 ने की थी एवं अपनी राजधानी अन्हिलवाड़ को बनाया था।

भमी-1 के सामन्त विमल शाह ने माउन्ट आबू, राजस्थान में दिलवाड़ा जैन मंदिर का निर्माण करवाया था।

भीम-1 के समय महमूद गजनवी ने सोमनाथमंदिर पर आक्रमण किया था तथा भारी लूटपाट की थी।

मूलराज-2 ने 1178 ई. में आबू पर्वत के समीप मुहम्मद गौरी को परास्त किया।

1187 ई. में कुतुबुद्दीन एबक ने भीम-2 को परास्त किया था।

चंदेल वंश(जेजाक भुक्ति)

चंदेल वंश का प्रथम शासक ननुक था। चंदेल प्रतिहारों के सामन्त थे।

यशोवर्मन ने खजुराहो के चतुर्भुज मंदिर(विष्णु मंदिर) का निर्माण करवाया।

धंगदेव ने खजुराहो में अनेक मंदिरों का निर्माण करवाया।

कीर्तिवर्मन ने महोबा के निकट कीरत सागर का निर्माण करवाया।

चौहान वंश(शाकम्भरी, अजमेर के निकट)

शाकंभरी में चौहान वंश की स्थापना वासुदेव ने की थी।

अजयराज ने अजमेर(अजयमेरू) नगर की स्थापना की थी।

प्रारंभ में चौहान शासक प्रतिहारों के सामंत थे। दसवीं शताब्दी के प्रारंभ में वाक्पति राज प्रथम ने प्रतिहारों से स्वंय को स्वतंत्र कर लिया।

पृथ्वीराज-3 (पृथ्वीराज चौहान)

अन्य नाम – राय पिथौरा

यह सोमेश्वर का पुत्र था जो 1178 ई. में दिल्ली की गद्दी पर बैठा।

1182 ई. में पृथ्वीराज चौहान एवं चन्देल शासक परमार्दिदेव के बीच युद्ध हुआ इसमें परमार्दिदेव की पराजय हुई तथा परमार्दिदेव के लोक प्रसिद्ध सेना नायक आल्हा-ऊदल वीरगति को प्राप्त हुए।

तराइन का प्रथम युद्ध

सन 1191 ई. में मुहम्मद गौरी एवं पृथ्वीराज चौहान के बीच तराइन का प्रथम युद्ध हुआ। इस युद्ध में मुहम्मद गौरी बुरी तरह पराजित एवं घायल हुआ और अपनी सेना के साथ वापस चला गया।

तराइन का द्वितीय युद्ध

सन् 1192 ई. को पुनः मुहम्मद गौर एवं पृथ्वीराज चौहान के बीच युद्ध हुआ। परन्तु गौरी ने कुछ समय बाद प्रातःकाल में चौहान की सेना पर आक्रमण किया। सेना को हमले का आभास नहीं था अतः चौहान की हार हुई एवं चौहान को बंदी बना लिया

राष्ट्रकूट वंश

राष्ट्रकूटों के अभिलेख में उनका मूल स्थान लट्टलूर(लातूर, बीदर जिला) माना गया है किन्तु बाद में एलिचपुर (बरार) में इस वंश का राज्य स्थापित हुआ।

दन्तिदुर्ग

राष्ट्रकूटों के स्वतंत्र राज्य की स्थापना दन्तिदुर्ग ने की थी। इसने अपनी राजधानी मान्यखेत(मालखण्ड) बनायी।

इसने चालुक्य शासक कीर्तिवर्मन को परास्त कर अपनी स्वतंत्रता की घोषणा की।

चालुक्य शासक विक्रमादित्य ने असे पृथ्वी वल्लभ और खड्वालोक की उपाधि दी।

दन्तिदुर्ग ने महाराजाधिराज, परमेश्वर, परमभट्टारक की उपाधि धारण की।

दन्तिदुर्ग ने हिरण्यगर्भदान नामक महायज्ञ किया।

कृष्ण-1

कृष्ण प्रथम ने द्रविड शैली के एलोरा के प्रसिद्ध कैलाशनाथ मन्दिर का निर्माण करवाया।

कृष्ण प्रथम ने चालुक्य राज्य का अस्तित्व समाप्त कर दिया।

गोविन्द-3

इसने पल्लवों, पाण्ड्यों, केरलों तथा गंग राजाओं के संघ को नष्ट कर दक्षिण में अपनी सार्वभौम सत्ता स्थापित की।

अमोघवर्ष

यह राष्ट्रकूटों का अन्तिम महान शासक था।

अमोघवर्ष ने कन्नड भाषा में कविराजमार्ग तथा प्रश्नोत्तरमलिका की रचना की।

दरबारी कवि

  1. जिनसेन ने ‘आदिपुराण’ की रचना की।
  2. शकटायन ने ‘अमोघवृति’ की रचना की।
  3. महावीराचार्य ने ‘गणितसार संग्रह’ की रचना की।

राष्ट्रकूटों का राज्य चिन्ह – गरूड

राष्ट्रकूटों की मुद्राएं – कलंज, गाह्यंक, कसु।

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